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|रचनाकार=विजय कुमार पंत
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मैं एक दिल हूँ
प्यारा दिल हूँ
सांसों में रहता शामिल हूँ
मैं एक दिल हूँ
प्यारा दिल हूँ
हँसता हूँ मैं
कोई न रूठे
सुंदर सपने
कभी न टूटे
उड़ती है जो आसमान में
उन आशाओं की मंजिल हूँ
मैं एक दिल हूँ
प्यारा दिल हूँ
जाग उठेंगे
जो सोचेंगे
बहते आंसू
हम पोछेंगे
मुझ से मिल कर जी उठोगे
सागर का ठहरा साहिल हूँ
मैं एक दिल हूँ
प्यारा दिल हूँ..
दिल पावन निर्मल होता है
दिल से धर्म जगत में जीता है
दिल ही है कुरान हमारी
दिल ही गुरु ग्रन्थ , गीता है
मुझको जीतो मुझको जानो
क्या क्या करने के काबिल हूँ
मैं एक दिल हूँ
प्यारा दिल हूँ...
</poem>
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