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कुदरत की लेखनी--ग़ज़ल / मनोज श्रीवास्तव
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09:21, 22 जुलाई 2010
उम्र के तकाज़े पर, बला के ज़नाज़े पर
तलबा
तलब
झुर्रियों के कहर लिख रही हो.
कुहासों के न्योते पर, ज़फाओं के सोते पर
यहां सर्द दिल का शहर लिख रही हो.
पहाड़ों के घेरे हैं,
सहारों
सहरों
के डेरे हैं,
करम आदमी के, वतन लिख रही हो.
(रचना-काल: ०२-०६-१९९२)
Dr. Manoj Srivastav
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