{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=अशोक चक्रधर]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह=तमाशा / अशोक चक्रधर]]}}
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~घास काटकर नहर के पास, <br>कुछ उदास-उदास सा<br>चला जा रहा था<br>गरीबदास। <br>कि क्या हुआ अनायास...<br><br>
अच्छा दिखाई दिए सामने देख<br>आसमान दिखता है?दो मुस्टंडे,<br>- दिखता है।जो अमीरों के लिए शरीफ़ थे<br>धरती दिखती है?पर ग़रीबों के लिए गुंडे। <br>- दिखती है।उनके हाथों में<br>ये दोनों जहाँ मिलते हैं<br>वो लाइन दिखती है?<br>- दिखती है साब।<br>- इसे तो बहुत बार देखा है।<br>बस ग़रीबदास यही ग़रीबी की रेखा है।<br>सात जनम बीत जाएँगे<br>तू दौड़ता जाएगातेल पिए हुए डंडे थे,<br>दौड़ता जाएगा,<br>लेकिन वहाँ तक<br>कभी नहीं पहुँच पाएगा।<br>और जब, पहुँच ही नहीं पाएगाखोपड़ियों में<br>तो उठ कैसे पाएगा?हज़ारों हथकण्डे थे।<br>जहाँ हैं, वहीं का वहीं रह जाएगा।बोले-<br><br>
ओ गरीबदाससुन !<br>अच्छा मुहूरत है<br>अच्छा सगुन। <br>हम तेरे दलिद्दर मिटाएंगे, <br>ग़रीबी की रेखा से<br>ऊपर उठाएंगे। <br>गरीबदास डर गया बिचारा, <br>उसने मन में विचारा-<br>इन्होंने गांव की<br>कितनी ही लड़कियां उठा दीं। <br>कितने ही लोग <br>ज़िंदगी से उठा दिए<br>अब मुझे उठाने वाले हैं,<br> आज तो<br>भगवान ही रखवाले हैं। <br><br> -हां भई गरीबदास<br>चुप क्यों है ?<br>देख मामला यों है <br>कि हम तुझे <br>ग़रीबी की रेखा से<br>ऊपर उठाएंगे, <br>रेखा नीचे रह जाएगी<br>तुझे ऊपर ले जाएंगे। <br><br> गरीबदास ने पूछा-<br>कित्ता ऊपर ?<br><br> -एक बित्ता ऊपर<br>पर घबराता क्यों है<br>ये तो ख़ुशी की बात है, <br>वरना क्या तू<br>और क्या तेरी औक़ात है ?<br>जानता है ग़रीबी की रेखा ?<br>-हजूर हमने तो <br>कभी नहीं देखा। <br><br> -हं हं, पगले, <br>घास पहले<br>नीचे रख ले।<br>गरीबदास !<br>तू आदमी मज़े का है, <br>देख सामने देख<br>वो ग़रीबी की रेखा है।<br><br> -कहां है हजूर ?<br><br> -वो कहां है हजूर ?<br>-वो देख, <br>सामने बहुत दूर।<br><br> -सामने तो<br>बंजर धरती है बेहिसाब, <br>यहां तो कोई <br>हेमामालिनी<br>या रेखा नईं है साब।<br>-वाह भई वाह,<br>सुभानल्लाह।<br>गरीबदास <br>तू बंदा शौकीन है, <br>और पसंद भी तेरी <br>बड़ी नमकीन है। <br>हेमामालिनी <br>और रेखा को<br>जानता है<br>ग़रीबी की रेखा को<br>नहीं जानता, <br>भई, मैं नहीं मानता। <br><br> -सच्ची मेरे उस्तादो !<br>मैं नईं जानता<br>आपई बता दो।<br>-अच्छा सामने देख<br>आसमान दिखता है ?<br><br> -दिखता है।<br><br> -धरती दिखती है ?<br><br> -ये दोनों जहां मिलते हैं<br>वो लाइन दिखती है ?<br>-दिखती है साब <br>इसे तो बहुत बार देखा है। <br><br> -बस गरीबदास <br>यही ग़रीबी की रेखा है। <br>सात जनम बीत जाएंगे<br>तू दौड़ता जाएगा, <br>दौड़ता जाएगा, <br>लेकिन वहां तक<br>कभी नहीं पहुंच पाएगा। <br>और जब<br>पहुंच ही नहीं पाएगा <br>तो उठ कैसे पाएगा ?<br>जहां है<br>वहीं-का-वहीं रह जाएगा। <br><br> लेकिन <br>तू अपना बच्चा है, <br>और मुहूरत भी<br>अच्छा है !<br>आधे से थोड़ा ज्यादा <br>कमीशन लेंगे<br>और तुझे<br>ग़रीबी की रेखा से<br>ऊपर उठा देंगे। <br><br> ग़रीबदास !<br>
क्षितिज का ये नज़ारा<br>
हट सकता है<br>
पर क्षितिज की रेखा<br>
नहीं हट सकती, <br>हमारे देश में<br>रेखा की ग़रीबी तो <br>मिट सकती है,<br>
पर ग़रीबी की रेखा<br>
नहीं मिट सकती।<br>तू अभी तक<br>इस बात से <br>आंखें मींचे है, <br>कि रेखा तेरे ऊपर है<br>और तू उसके नीचे है।<br>हम इसका उल्टा कर देंगे<br>तू ज़िंदगी के <br>लुफ्त उठाएगा, <br>रेखा नीचे होगी<br>तू रेखा से<br>ऊपर आ जाएगा। <br><br> गरीब भोला तो था ही<br>थोड़ा और भोला बन के, <br>बोला सहम के-<br>क्या गरीबी की रेखा<br>हमारे जमींदार साब के<br>चबूतरे जित्ती ऊंची होती है ?<br><br> -हां, क्यों नहीं बेटा। <br>ज़मींदार का चबूतरा तो <br>तेरा बाप की बपौती है<br>अबे इतनी ऊंची नहीं होती <br>रेखा ग़रीबी की, <br>वो तो समझ <br>सिर्फ़ इतनी ऊंची है<br>जितनी ऊंची है<br>पैर की एड़ी तेरी बीवी की। <br>जितना ऊंचा है<br>तेरी भैंस का खूंटा, <br>या जितना ऊंचा होता है <br>खेत में ठूंठा, <br>जितनी ऊंची होती है <br>परात में पिट्ठी,<br>या जितनी ऊंची होती है<br>तसले में मिट्टी <br>बस इतनी ही ऊंची होती है<br>ग़रीबी की रेखा, <br>पर इतना भी<br>ज़रा उठ के दिखा !<br><br> कूदेगा<br>पर धम्म से गिर जाएगा<br>एक सैकिण्ड भी <br>ग़रीबी की रेखा से<br>ऊपर नहीं रह पाएगा।<br>लेकिन हम तुझे<br>पूरे एक महीने के लिए <br>उठा देंगे, <br>खूंटे की <br>ऊंचाई पे बिठा देंगे।<br>बाद में कहेगा<br>अहा क्या सुख भोगा...।<br><br> गरीबदास बोला-<br>लेकिन करना क्या होगा ?<br>-बताते हैं<br>बताते हैं, <br>अभी असली मुद्दे पर आते हैं।<br>पहले बता<br>क्यों लाया है<br>ये घास ?<br><br> -हजूर, <br>एक भैंस है हमारे पास।<br>तेरी अपनी कमाई की है ?<br><br> नईं हजूर !<br>जोरू के भाई की है।<br><br> सीधे क्यों नहीं बोलता कि <br>साले की है, <br>मतलब ये कि <br>तेरे ही कसाले की है।<br>अच्छा,<br>उसका एक कान ले आ <br>काट के, <br>पैसे मिलेंगे<br>तो मौज करेंगे बांट के।<br>भैंस के कान से पैसे, <br>हजूर ऐसा कैसे ?<br><br> ये एक अलग कहानी है, <br>तुझे क्या बतानी है ! <br>आई.आर.डी.पी. का लोन मिलता है<br>उससे तो भैंस को<br>ख़रीदा हुआ दिखाएंगे<br>फिर कान काट के ले जाएंगे<br>और भैंस को मरा बताएंगे<br>बीमे की रकम ले आएंगे<br>आधा अधिकारी खाएंगे<br>आधे में से<br>कुछ हम पचाएंगे, <br>बाक़ी से <br>तुझे <br>और तेरे साले को<br>ग़रीबी की रेखा से <br>ऊपर उठाएंगे।<br><br> साला बोला-<br>जान दे दूंगा<br>पर कान ना देने का। <br><br> क्यों ना देने का ?<br><br> -पहले तो वो <br>काटने ई ना देगी<br>अड़ जाएगी, <br>दूसरी बात ये कि <br>कान कटने से <br>मेरी भैंस की <br>सो बिगड़ जाएगी। <br>अच्छा, तो...<br>शो के चक्कर में<br>कान ना देगा, <br>तो क्या अपनी भैंस को <br>ब्यूटी कम्पीटीशन में<br>जापान भेजेगा ?<br>कौन से लड़के वाले आ रहे हैं<br>तेरी भैंस को देखने<br>कि शादी नहीं हो पाएगी ?<br>अरे भैंस तो <br>तेरे घर में ही रहेगी<br>बाहर थोड़े ही जाएगी। <br><br> और कौन सी <br>कुंआरी है तेरी भैंस<br>कि मरा ही जा रहा है,<br> अबे कान मांगा है<br>मकान थोड़े ही मांगा है<br>जो घबरा रहा है। <br>कान कटने से <br>क्या दूध देना<br>बंद कर देगी, <br>या सुनना बंद कर देगी ?<br>अरे ओ करम के छाते !<br>हज़ारों साल हो गए<br>भैंस के आगे बीन बजाते।<br> आज तक तो उसने<br>डिस्को नहीं दिखाया,<br> तेरी समझ में<br>आया कि नहीं आया ?<br>अरे कोई पर थोड़े ही <br>काट रहे हैं<br>कि उड़ नहीं पाएगा परिन्दा,<br>सिर्फ़ कान काटेंगे<br>भैंस तेरी<br>ज्यों की त्यों ज़िंदा।<br><br> ख़ैर, <br>जब गरीबदास ने<br>साले को <br>कान के बारे में<br>कान में समझाया, <br>और एक मुस्टंडे ने<br>तेल पिया डंडा दिखाया, <br>तो साला मान गया,<br>और भैंस का <br>एक कान गया। <br><br> इसका हुआ अच्छा नतीजा, <br>ग़रीबी की रेखा से<br>ऊपर आ गए<br>साले और जीजा।<br>चार हज़ार में से<br>चार सौ पा गए, <br>मज़े आ गए। <br><br> एक-एक धोती का जोड़ा<br>दाल आटा थोड़ा-थोड़ा<br>एक एक गुड़ की भेली<br>और एक एक बनियान ले ली। <br><br> बचे-खुचे रुपयों की <br>ताड़ी चढ़ा गए, <br>और दसवें ही दिन<br>ग़रीबी की रेखा के<br>नीचे आ गए।<br>