* [[लौ लगाती गीत गाती,/ नरेन्द्र शर्मा]]
* [[फटा ट्वीड का नया कोट / नरेन्द्र शर्मा]]
* [[मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ ) / नरेन्द्र शर्मा]] मैँने भी मधु के गीत रचे, मेरे मन * [[सुख-सुहाग की मधुशाला मेँ यदि होँ मेरे कुछ गीत बचे, तो उन गीतोँ के कारण ही, कुछ और निभा ले प्रीत ~ रीत ! मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ ) मधु कहाँ , यहाँ गँगा दिव्य- जल है !ज्योति से / नरेन्द्र शर्मा]] प्रभु के चरणोँ मे रखने को , जीवन का पका हुआ फल है ! मन हार चुका मधुसदन को, मैँ भूल चुका मधु भरे गीत ! मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ ) वह गुपचुप प्रेम भरीँ बातेँ, (२) यह मुरझाया मन भूल चुका वन कुँजोँ की गुँजित रातेँ (२) मधु कलषोँ के छलकाने की हो गयी , मधुर बेला व्यतीत ! मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ ) रचना : * [ स्व पँ. [ / नरेन्द्र शर्मा ]] मेरे गीत बडे हरियाले,मैने अपने गीत,सघन वन अन्तराल सेखोज निकालेमैँने इन्हे जलधि मे खोजा,जहाँ द्रवित होता फिरोज़ामन का मधु वितरित करने को, गीत बने मरकत के प्याले !कनक - वेनु, नभ नील रागिनी, बनी रही वँशी सुहागिनी-सात रँध्र की सीढी पर चढ,गीत बने हारिल मतवाले ! देवदारु की हरित शिखर परअन्तिम नीड बनायेँगे स्वर,शुभ्र हिमालय की छाया मेँ,लय हो जायेँगे, लय वाले ! * [ स्व. पँ. [ / नरेन्द्र शर्मा ]]ऐसे हैं सुख सपन हमारेबन बन कर मिट जाते जैसेबालू के घर नदी किनारेऐसे हैं सुख सपन हमारे....लहरें आतीं, बह बह जातींरेखाए बस रह रह जातींजाते पल को कौन पुकारेऐसे हैं सुख सपन हमारे....ऐसी इन सपनों की मायाजल पर जैसे चाँद की छायाचाँद किसी के हाथ न आयाचाहे जितना हाथ पसारेऐसे हैं सुख सपन हमारे.... '''ज्योति पर्व : ज्योति वंदना''' जीवन की अँधियारी रात हो उजारी !धरती पर धरो चरण तिमिर-तम हारी परम व्योमचारी!चरण धरो, दीपंकर, जाए कट तिमिर-पाश!दिशि-दिशि में चरण धूलि छाए बन कर-प्रकाश!आओ, नक्षत्र-पुरुष,गगन-वन-विहारी परम व्योमचारी!आओ तुम, दीपों को निरावरण करे निशा!चरणों में स्वर्ण-हास बिखरा दे दिशा-दिशा!पा कर आलोक, मृत्यु-लोक हो सुखारी नयन हों पुजारी!२०:३३, ५ मई २००८ (UTC)२०:३३, ५ मई २००८ (UTC)२०:३३, ५ मई २००८ (UTC)२०:३३, ५ मई २००८ (UTC)~ सुख सुहाग की दीव्य ~ ज्योति से, घर आँगन मुस्काये, ज्योति चरण धर कर दीवाली, घर आँगन नित आये" रचना : पँ.नरेद्र * [[ / नरेन्द्र शर्मा ]]लौ लगाती गीत गाती, दीप हूँ मैँ, प्रीत बातीनयनोँ की कामना,प्राणोँ की भावना.पूजा की ज्योति बन कर,चरणोँ मेँ मुस्कुरातीआशा की पाँखुरी, श्वासोँ की बाँसुरी ,थाली ह्र्दय की ले,नित आरती सजातीकुमकुम प्रसाद है,प्रभू धन्यवाद है हर घर में हर सुहागन, मँगल रहे मनाती२०:३९, ५ मई २००८ (UTC)२०:३९, ५ मई २००८ (UTC)२०:३९, ५ मई २००८ (UTC)२०:३९, ५ मई २००८ (UTC)~तुम्हेँ याद है क्या उस दिन कीनए कोट के बटन होल मेँ,हँसकर प्रिये, लगा दी थी जब वह गुलाब की लाल कली ? फिर कुछ शरमा कर, साहस कर,बोली थीँ तुम, " इसको योँ हीखेल समझ कर फेँक न देना,है यह प्रेम -भेँट पहली ! " कुसुम कली वह कब की सूखी,फटा ट्वीड का नया कोट भी,किन्तु बसी है सुरभि ह्रदय मेँ,जो उस कलिका से निकली ! '''( फरवरी १९३७, रचना प्रवासी के गीत काव्य सँग्रह से : * [[ / नरेन्द्र शर्मा )''']]