Changes

और रात में / लीलाधर मंडलोई

1,236 bytes added, 07:51, 29 जुलाई 2010
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=एक बहुत कोमल तान / लीलाधर …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=एक बहुत कोमल तान / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>

घर के पिछवाड़े एक झोपड़ी
वहां एक परछाईं है
जो रात गए रोती है

वह तो एक बेवा की झोपड़ी
जो तेज-तर्रार बहुत
इतनी कि उसके मर्दानगी के किस्‍से कई

हर कोई उससे खौफजदा
उसकी तरफ देखना भी
तो बस चुराते हुए आंखें

रात के सहरा में फिर ये कौन
जो रोता है बेतरह
मैं सोचता हूं तो जेहन में
झोपड़ी कौंध-कौंध जाती है

कहीं ये वही बेवा तो नहीं
जो दिन में कुछ और है
और रात में
जिंदगी के तमाम दुःखों से
इस तरह से टूट जाती है
00
778
edits