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हनुमान-तेंतालीस / अजित कुमार
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05:25, 2 अगस्त 2010
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<poem>
पर्वत को ही
कवच बनाकर
लता-गुल्म से उसको ढँककर
नभ में उड़े पवन-सुत सत्वर
हम समझे- ये श्री घोंघावर ।
</poem>
अनिल जनविजय
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