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कविता! तुम आवारा हो गई हो / मनोज श्रीवास्तव
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08:24, 3 अगस्त 2010
गन्हाते गोबर-सी
पसीनियाए काजल-सी
मेल
मैल
उबेटे,
आँखों और कानों में
कीचड़-खूंट समेटे,
नखरे और नख-शिख
भाल-गाल, उर, कटि
पूरी की पूरी कबाड़ बन गई हो
?
कविता! तुम आवारा हो गई हो
Dr. Manoj Srivastav
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