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06:56, 4 अगस्त 2010 {{KKRachna
|रचनाकार=अशोक लव
|संग्रह =लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान
}}
<poem>
रात भर पत्ते
जूतों तले दबते
चरमराते रहे
पागल हवा
बाल खोले चिल्लाती रही
कोई नहीं आया |
सूरज ने आकर देखा
पगडंडियों पर
पत्तों के गोली बिंधे शव
बिछे पड़े थे |
</poem>