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घायल हवा / अशोक लव

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<poem>

थरथराती हवा
चीखती रही रात भर
खटखटाती रही दरवाज़ों कि सांकलें
रात भर

पूरा गाँव
दरवाज़ों से चिपका
बहरा बना
जागते हुए सोया रहा

रात का अँधेरा चीरता रहा
हवा का सीना
दरवाज़ों तक आकर
लौट जाती रही सिसकियाँ हवा की

दिन चढ़ा
हर दरवाज़े के बाहर
टंगी थी
लहूलुहान हवा
</poem>
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