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माहिये-२ / रविकांत अनमोल

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रविकांत अनमोल |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>''''''जब फूल महकते हैं।हैं ।
हूक सी उठती है,
कुछ ़दर्द दर्द सुलगते हैं।हैं ।''''''देखा है बहारों में।में ।
फूल नहाते हैं,
किरनों की फुहारों में।में ।''''''जन्नत में क्या होगा।होगा ।
नूर की बगिया में,
इक फूल खिला होगा।होगा ।''''''फरियाद किया करना।करना ।
फुर्सत में हमको भी,
तुम याद किया करना।करना ।'''१०'''ये वक़्त है जाने का।का ।
मिल के बिछुड़ना ही,
दस्तूर ज़माने का।का ।
</poem>
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