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कविता सूरज है / अशोक लव

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जिन्हें कविता से डर लगता है
वे कविता की बातें नहीं करते
वे राजनीती के किस्सों की चासनी में
उंगलियाँ डुबाकर उन्हें चाटते हैं

वे उनकी बातें करते हैं
जिनका न धर्मं है , न ईमान
जो कुर्सियों को खाते हैं
कुर्सियों को पीते हैं
कुर्सियों में मर जाते हैं
कुर्सियों में दफ़न हो जाते हैं

कविता न चासनी है, न कुर्सी
कविता सीढ़ी-सच्ची बात कहती है
वह दिन को दिन
और रात को रात कहती है
वह भूख को भूख
और मदिरा को मदिरा कहती है

उन्हें कष्ट है
कि कविता सच को सच
क्यों कहती है
उनकी कोशिश है कि
कोई भी कविता की बात न करे
कुछ सिरफिरे हैं कि
फिर भी कविता लिखते हैं
कविता को जीते हैं

सूरज के आगे अंधेरों की
कितनी ही चादरें तान लें
कर देता है सूरज उन्हें तार-तार
अपनी रोशिनी से
उन्हें शिकायत है कि
कविता सूरज क्यों है!
</poem>
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