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{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश कौशिक
|संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक
}}
<poem>
देश
देश चिल्लाते हुए
आयातित ब्रुश और रंग से
जब तुम
इसकी भयंकर तस्वीर खींचते हो
तब मुझे कभी-कभी
बहुत डर लगता है-
कि थोड़ी ही देर में
हम सब
किसी क्रशिंग प्लांट में
गिरने वाले हैं
जहाँ से हमारे
हाथ,पाँव, आँख, नाक, कान
धड़ और सीना
डेढ़ से चार इंच के टुकड़ो में
विभाजित हो
धवन-भट्टी में पहुँच जायेंगे
और वहाँ से उठने वाली चिरायंध
सारे इतिहास का दम घोट देगी
लेकिन ऐसा
कभी नहीं होगा
देश से ज्यादा
देश के शुभचिन्तक बीमार हैं

देश का इलाज
देसी दवाई से हो जायेगा
कैसे ही न कैसे
वह बच जाएगा
पर देश-देश चिल्लाने वाला
यह बिचारा शुभचिन्तक
आयातित दवाई के अभाव में
मर जाएगा
</poem>
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