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<center><font size=5>अयोध्या काण्ड</font></center><br><br>
 <center><font size=1>श्रीगणेशायनमः'''</font></center><br><center><font size=1>श्रीजानकीवल्लभो विजयते</font></center><br><br><center><font size=6>श्रीरामचरितमानस'''</font></center><br><br><center><font size=4>द्वितीय सोपान</font></center><br><br><center><font size=5>अयोध्या-काण्ड'''</font></center><br><br>श्लोक<span class="shloka"><br>श्लोक<br>यस्याङ्के च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके<br>भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट्।<br>सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा<br>शर्वः सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम्।।1।।<br>माम् ॥१॥ <br>प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।<br>मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मञ्जुलमंगलप्रदा।।2।।<br><br>मञ्जुलमंगलप्रदा ॥२॥ <br>नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्।<br><br>पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्।।3।।रघुवंशनाथम् ॥३॥<br/span><br>
<br>दो0-श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।
<br>बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।
<br>राम रूपु गुनसीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ।। ४।।
<br>दो0-सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु।
<br>आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु।।1।।नरेसु।।१।।<br><br>
एक समय सब सहित समाजा। राजसभाँ रघुराजु बिराजा।।<br>
सकल सुकृत मूरति नरनाहू। राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू।। १।।<br>
नृप जुबराज राम कहुँ देहू। जीवन जनम लाहु किन लेहू।।४।। <br>
दो0-यह बिचारु उर आनि नृप सुदिनु सुअवसरु पाइ।<br>
प्रेम पुलकि तन मुदित मन गुरहि सुनायउ जाइ।।2।।जाइ।।२ ।।<br><br>
कहइ भुआलु सुनिअ मुनिनायक। भए राम सब बिधि सब लायक।।<br>
सेवक सचिव सकल पुरबासी। जे हमारे अरि मित्र उदासी।। १ ।। <br>
मुनि प्रसन्न लखि सहज सनेहू। कहेउ नरेस रजायसु देहू।।४।। <br>
दो0-राजन राउर नामु जसु सब अभिमत दातार।<br>
फल अनुगामी महिप मनि मन अभिलाषु तुम्हार।।3।।तुम्हार।।३।।<br><br>
सब बिधि गुरु प्रसन्न जियँ जानी। बोलेउ राउ रहँसि मृदु बानी।।<br>
नाथ रामु करिअहिं जुबराजू। कहिअ कृपा करि करिअ समाजू।। १ ।। <br>
भयउ तुम्हार तनय सोइ स्वामी। रामु पुनीत प्रेम अनुगामी।।<४।।<br>
दो0-बेगि बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु।<br>
सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु।।4।।जुबराजु।।४।।<br><br>
मुदित महिपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत्रु बोलाए।। <br>
कहि जयजीव सीस तिन्ह नाए। भूप सुमंगल बचन सुनाए। १।।<br>
हरषि हृदयँ दसरथ पुर आई। जनु ग्रह दसा दुसह दुखदाई।।<br>
दो0-नामु मंथरा मंदमति चेरी कैकेइ केरि।<br>
अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि।।12।।फेरि।।१२।।<br><br>
दीख मंथरा नगरु बनावा। मंजुल मंगल बाज बधावा।।<b>
पूछेसि लोगन्ह काह उछाहू। राम तिलकु सुनि भा उर दाहू।।<br>