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वर्तमान हैं हम / मुकेश मानस

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इतिहास वहाँ से शुरू करो
जहाँ हम थे
अपने समूचे जिस्म
और पूरे व्यक्तित्व के साथ
जिन्हें हर लिया था तुमने
अपनी कुटिलताओं से

इतिहास वहाँ से शुरू करो
जहाँ सिर थे हमारी गर्दनों पर
जिन्हें कब्जा लिया था
तुम्हारी क्रूर इच्छाओं ने

इतिहास वहाँ से शुरू करो
जहाँ से काट लिये गये थे
हमारे हाथ, ऊंगलियाँ और अँगूठे

इतिहास वहाँ से शुरू करो
जहाँ से हमारे घर
हमारे नहीं रहे

हमारे बच्चे, हमारे सपने
हमारे नहीं रहे
इतिहास वहाँ से शुरू करो
जहाँ से अपने गुलाम शरीर
और अपंग व्यक्तित्व के साथ
हमने शुरू किया था
एक दुर्बोध और यातनापूर्ण सफ़र

हम इस सभ्यता की
उपेक्षित अस्मिताएं हैं
यही हमारी सभ्यता है

हम इस इतिहास से
निकाले गए नायक हैं
यही हमारा इतिहास है

मगर हम भुला चुके इतिहास
इतिहास गया बीत
बीत गये इतिहास से
अब कुछ नहीं हासिल

अब वर्तमान हैं हम, इतिहास नहीं
शक्तिमान हैं हम, उपहास नहीं
2002


<poem>
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