{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=शाहिद अख़्तर|संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>'''खोमोशी गज़ा पट्टी पर इस्राइली हमले के खिलाफखिलाफ़ लिखी गई कविता'''
दर्द हो तो
मदावा भी होगा
हमारी खामोशी ख़ामोशी जुर्म ज़ुर्म होगीअपने खिलाफखिलाफ़
और हम भुगत रहे हैं
इसकी ही सजा सज़ा
लब खोलो
कुछ बोलो
कोई नारा, कोई सदा
उछालो जुल्मत ज़ुल्मत की इस रात में आवाजों आवाज़ों के बम और बारूदढह जाएंगे जाएँगे इन से जालिमों ज़ालिमों के किले('''रचनाकाल''' : 14.01.09: गाजा पर इस्राइली हमले के खिलाफ लिखी कविता)--[[सदस्य:Shahid|Shahid]] 06:16, 25 अगस्त 2010 (UTC)</poem>