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एक लहर फैली अनन्त की / त्रिलोचन
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सीधी है भाषा बसन्त की
कभी आंख ने समझी
कभी कान ने पायी
कभी रोम-रोम से
प्राणों में भर आयी
और है कहानी दिगन्त की
नीले आकाश में
नयी ज्योति छा गयी
कब से प्रतीक्षा थी
वही बात आ गयी
एक लहर फैली अनन्त की ।
('ताप के ताये हुए दिन' नामक संग्रह से )
अनिल जनविजय
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