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{{KKRachna
|रचनाकार=अशोक लव
}}
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पींगों पर झूलती
झुलाती लड़कियाँ
पांवों में घुँघरू बजाती
छनछनाती लड़कियाँ
गीतों को स्वर देती
गुनगुनाती लड़कियाँ
घर-आँगन बुहारती
संवारती लड़कियाँ .

मर्यादाओं की परिभाषा
होती हैं लड़कियाँ
संस्कारों को जीती
जगाती हैं लड़कियाँ
पैरों में आसमान
झुकाती हैं लड़कियाँ.
</poem>
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