1,361 bytes added,
17:29, 27 अगस्त 2010 कुछ बड़े तो मात्र दिखने के बड़े हैं
पराये कन्धों पे जो अकड़े खड़े हैं
पास जाकर देख लो उनकी जमीं को
ढ़ेर लघुता के वहाँ चर्चे गड़े हैं
मात्र गुणवत्ता यहाँ काफी नहीं हे
यूं तो हीरे हजारों बिखरे पड़े हैं
हो गये पाकर अनुग्रह कीमती जो
काँच सोने की अंगूठी में जड़े हैं
हो गई है मौन प्रतिभा बन्दिनी सी
सांस पर दुःस्वार्थ के पहरे कड़े हैं
बड़े धार्मिक खड़े हैं बन्दूक ताने
इबादत की जगह तो पत्थर अड़े हैं
दबाओं से दर्द बढ़ता जा रहा हैं
बड़ों के बोये गड़े कांटे सड़े हैं
उन बड़ों की बात भी करना बुरा है
याद से ही कटारे होते खड़े हैं