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17:51, 27 अगस्त 2010 आया विकट ट्रांसफरी मौसम
और शुरू छलछन्द हो गया
काम काज सब बन्द हो गया।।
आफिस के अन्दर ही अन्दर
उठे रोज कागजी बबण्डर
कोई आ गया घर के अन्दर
चला दूर कोई सात समुन्दर
हंस हुए सर से निष्काषित
बगुलों का आनन्द हो गया।।
आशंका की छाई बदलियां
बिन गरजे ही गिरें बिजलियां
बिना सोर्स अधिकारी तड़पें
जैसे पानी बिना मछलियां
दुबला हुआ सूखकर धरमू
लालू सेहतमन्द हो गया।।
छुटभैये मेंठक टर्राते
डबरे देख देख गर्राते
बड़े सांप भी उनके आगे
शीश झुका थर थर थर्राते
हुई असह्य उष्ण जलवायु
मौसम देहशतमन्द हो गया।।
बड़ी दूर से मुख्यालय पर
आया भैयाजी का चमचा
मास्साब को रोब दिखाता
उनके चमचे का भी चमचा
शिष्टाचार हुआ प्रतिबन्धित
अनाचार स्वच्छन्द हो गया।।