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कविताओं से बाहर जीने के दौर में / मनोज श्रीवास्तव
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11:19, 3 सितम्बर 2010
कविताओं में वापस आने वाले लोग
कहाँ ज़मीन तलाशेंगे?
चप्पे-चप्पे पर विकास की
इमारत खड़ी होगी,
Dr. Manoj Srivastav
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