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कवियों से कह दो / मनोज श्रीवास्तव
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11:22, 3 सितम्बर 2010
बतौर ठोस आदर्श
बांचना-आलापना
दूभर हो गया है
!
इस तरल दौर में
--
कवियों से कह दो
कि वे चाट-मसाले
Dr. Manoj Srivastav
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