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11:24, 5 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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<poem>
जिस किसी का सूरज से सिलसिला निकलता है
बस वही चिरागों को रौंदता निकलता है
बस्तियों के जंगल में आदमी नहीं मिलते
आजकल जिसे देखो देवता निकलता है
पास वाले झुरमुट में लाशें मिलती हैं अक्सर
गाँव वाले कहते हैं भेड़िया निकलता है
उम्र बीत जाती है सिर्फ़ यह समझने में
चक्रव्यूह से कैसे रास्ता निकलता है
जश्न है, खमोशी है, सब पड़े हैं सजदे में
इस डगर से राजा का काफिला निकलता है
तू सुलगता रहता है कौन आग में सर्वत
तेरे जिस्म से अक्सर कोयला निकलता है<poem/>