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रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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मुकाबले में जो सूरजमुखी नहीं होती

तो धूप नर्म ही होती, कड़ी नहीं होती


बची हुई है अकीदत यहाँ अभी वरना

अजान होती कहीं पर न आरती होती


सड़क पे अस्मतें लुटती हैं इन दिनों लेकिन

कहीं किसी को भी शर्मिन्दगी नहीं होती


उजाला क्या है, ये एहसास हो गया जब से

चिराग जलते हैं और रोशनी नहीं होती


हमारे अपने ही होते न गर वतन गद्दार

गुलामी नाम की लानत बची नहीं होती


मैं जात, धर्म, इलाकों पे क्या कहूँ सर्वत

हंसी तो आती है, संजीदगी नहीं होती <poem/>