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ये कौंन सा शहर है / मुकेश मानस

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<poem>

यहाँ एक फूल था
जो सदा खिला रहता था

यहाँ एक चेहरा था
जो सदा मुस्कुराता था

यहाँ एक रास्ता था
जो सदा खुला रहता था

यहाँ एक दोस्त था
जो मुश्किल में काम आता था

मगर अब यहाँ पसरा है
अन्धेरा ही अन्धेरा
इसमें कुछ नहीं देता दिखाई
न फूल, न चेहरा, न रास्ता
और न कोई दोस्त

बस एक अहसास सा होता है
एक अजीब सी गंध का
एक अजीब से शोर का
एक अजनबी सा होने का
डर लगता है मुझे
यहाँ अपने खोने का
और इसके सिवा
कुछ नहीं होता यहाँ
कुछ नहीं दिखता यहाँ

ये कौंन सी उदास सहर है?
ये कौन सी धूसर शाम है?
ये जिन्दगी की राह का
कौन सा मुकाम है?

ये कौन सा शहर है?
2005

<poem>
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