दे के आवाज़ तुमको पुकारा भी था
फिर भी पथ में अकेला मैं क्यों रह गया
इसी उलझन में उलझा रहा रात् रात भर, दीप सा मन……
हैं ठहरते सभी के यहीं पर कदमक़दमसफ़र होता सभी का यहीं पर खत्मख़त्म
सभी आये हैं आओगे तुम भी यहीं
इसी आशा में जगता रहा रात भर, दीप सा मन्………मन………
1988
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