Changes

गीत-4 / मुकेश मानस

No change in size, 13:45, 7 सितम्बर 2010
दे के आवाज़ तुमको पुकारा भी था
फिर भी पथ में अकेला मैं क्यों रह गया
इसी उलझन में उलझा रहा रात् रात भर, दीप सा मन……
हैं ठहरते सभी के यहीं पर कदमक़दमसफ़र होता सभी का यहीं पर खत्मख़त्म
सभी आये हैं आओगे तुम भी यहीं
इसी आशा में जगता रहा रात भर, दीप सा मन्………मन………
1988
<poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,637
edits