लिहाजा, जब आदम भीड़
मंदिर में आरती गा रही हो
मस्जिद में अजान अलाप आलाप रही हो
हाट में चाट या जलेबी खा रही हो
घाटों पर नहा-धोकर
खामोशी की,
घुप्प सनसनाहट
यांत्रिक-अयांत्रिक शोरों की,
और सरगम के पार का स्वर भी
फूटता है भीड़ के गले से ही
मोनोलिसा के
बहुभावामय बहुभावमय चहरे की तरह
भीड़ की गुनगुनाहट
भावनाओं के साथ नहीं करती है