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[[Category:गज़ल]]
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ज़िन्दगी ये तो नहीं, तुझको सँवारा ही न हो
कुछ न कुछ हमने तिरा क़र्ज़ उतारा ही न हो
ज़िन्दगी ये तो नहींकू-ए-क़ातिल की बड़ी धूम है चलकर देखेंक्या ख़बर, तुझको सँवारा ही न हो<br>कुछ न कुछ हमने तिरा क़र्ज़ उतारा कूचा-ए-दिलदार से प्यारा ही न हो<br><br>
कू-ए-क़ातिल की बड़ी धूम दिल को छू जाती है चलकर देखें<br>यूँ रात की आवाज़ कभीक्या ख़बर, कूचा-ए-दिलदार से प्यारा चौंक उठता हूँ कहीं तूने पुकारा ही न हो<br><br>
दिल को छू जाती कभी पलकों पे चमकती है यूँ रात जो अश्कों की आवाज़ कभी<br>लकीरचौंक उठता सोचता हूँ कहीं तूने पुकारा तिरे आँचल का किनारा ही न हो<br><br>
कभी पलकों पे चमकती है जो अश्कों की लकीर<br>ज़िन्दगी एक ख़लिश दे के न रह जा मुझकोसोचता हूँ तिरे आँचल का किनारा दर्द वो दे जो किसी तरह गवारा ही न हो<br><br>
ज़िन्दगी एक ख़लिश दे के न रह जा मुझको<br>दर्द वो दे जो किसी तरह गवारा ही न ‘हो<br><br> शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ<br>
न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो
</poem>
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