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आज ही होगा / बालकृष्ण राव

30 bytes removed, 16:29, 18 सितम्बर 2010
त्यौहार का दिन आज ही होगा !
उमंगें यूँ अकारण ही नहीं उठतीउठतीं,न अनदेखे इशारे पर कभी यूँ नाचता मन ;खुले से लग रहे हैं द्वार मंदिर के .
बढ़ा पग-
मूर्ति के श्रींगार शृंगार का दिन आज ही होगा !
न जाने आज क्योँ क्यों दिल चाहता है-
स्वर मिला कर
अनसुने स्वर में किसी की कर उठे जयकार!
न जाने क्यूँ
बिना पाए हुए भी दान याचक मन ,विकल है वयक्त व्यक्त करने के लिए आभार !
कोई तो,कंही कहीं तोप्रेरणा का श्रोत स्रोत होगा ही-उमंगें यूँ अकारण ही नहीं उठती उठतीं,नदी में बाढ़ आई है कंही कहीं पानी गिरा होगा !
अचानक सिथिलशिथिल-बंधन हो रहा है आज मोक्ष्सान मोक्षासन बंदी मन -किसी की तो कंही कहीं कोई भगीरथ -साधना पूरी हुई होगी,किसी भागीरथी के भूमि पर अवतार का दी दिन आज ही होगा !
मनाना चाहता है आज ही ?
-तो मान ले
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