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वार्ता:नवीन जोशी 'नवेंदु'

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नया पृष्ठ: हाथ-पैर शरीर में जान से अधिक जरूरी हो गई है गाड़ियों के पहियों में…
हाथ-पैर

शरीर में जान से अधिक
जरूरी हो गई है
गाड़ियों के पहियों में हवा!
उनकी हवा निकल गई तो
समझो मनुष्य की जिन्दगी ही रुक गई।

पहले सभी काम-धंधे होते थे हाथ-पैरों से
खेती-बाड़ी में पैदा किया जाता था अनाज
गाय-बच्छियों को पाल-पोशकर मिलता था दूध-घी
जंगल से लाते थे लकड़ियां ईंधन को
नमक के अतिरिक्त
सब कुछ हाथ-पांव ही पैदा करते थे।

आज अनाज पैदा होता है-बनिये की दुकान पर
सब्जी मण्डी में
और दूध देती हैं थैलियां।

गाड़ी, गैस, बिजली, पानी, टेलीफोन, कम्प्यूटर के
हाथों में आज हमारे हाथ-पैर
ये रुक गऐ
फूल जाते हैं हमारे हाथ-पैर
आगे न जाने क्या-क्या बनेंगे हमारे हाथ-पैर
जिनके बिना हम
हाथ-पैर होते हुऐ भी
लूले लंगड़े हो जाऐंगे।


मूल कुमाउनी कविता `हात खुट´

आंग में ज्यान है ज्यादे
जरूरी हैगे
गा्ड़िक घ्वीरों में हा्व!
उनरि सांस मुजि ग्येई....
समझो मैंसेकि ज्यूनि`ई थमि गे।
आज मैंसा्क हात-खुट जै गा्ड़िक घ्वीर बंड़ि ग्येईं।

पैली सब काम धंध हुंछी हात-खुटोंल
खेति-बाड़ि में पैद करी जांछी अनाज
गोरु-बा्छ सैन्ति मिलछी दूद-घ्यू
बंण बै ल्यूंछी लाका्ड़,
नूंण बका्य
सब पैद करछी हात-खुटै।

आज अनाज पैद हूं-बंणियैकि दुकान में
साग मण्डि में,
दूद दीं थैलि।


गाड़ि, गैस, बिजुलि, पांणि, टेलिफून, कम्प्यूटरा्क
हात में छन हमा्र हात-खुट
यं रुकि ग्या्या
फुलि जानीं हात-खुट
अघिल जांणि कि-कि बणांल हात-खुट
जना्र बिना हम
छन हात-खुटै
लुली जूंल।