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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : इन फ़िरकापरस्तों की बातों में न आ जानातुहमतें चन्द अपने ज़िम्मे धर चले<br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[आदिल रशीदख़्वाजा मीर दर्द]]</td>
</tr>
</table>
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
रूहों ने शहीदों की फिर हमको पुकारा हैतुहमतें चन्द अपने ज़िम्मे धर चले सरहद की सुरक्षा का अब फ़र्ज़ तुम्हारा हैकिसलिए आये थे हम क्या कर चले
हमला हो जो दुश्मन का हम जायेगे सरहद परजाँ देंगे वतन पर ये अरमान हमारा ज़िंदगी हैया कोई तूफ़ान हैहम तो इस जीने के हाथों मर चले
क्या हमें काम इन फिरकापरस्तों की बातों में न आ जानागुलों से ऐ सबामस्जिद भी हमारी है एक दम आए इधर, मंदिर भी हमारा हैउधर चले
ये कह के हुमायूँ को भिजवाई थी इक राखीदोस्तो देखा तमाशा याँ का बसमजहब हो कोई लेकिन तू भाई हमारा हैतुम रहो अब हम तो अपने घर चले
अब चाँद भले काफ़िर कह दें आह!बस जी मत जला तब जानियेजब कोई अफ़्सूँ तेरा उस पर चले ये जहाँ वालेजिसे कहते हैं मानवता वो धर्म हमारा हैशमअ की मानिंद हम इस बज़्म मेंचश्मे-नम आये थे, दामन तर चले
रूहों ने शहीदों की फिर हमको पुकारा हैढूँढते हैं आपसे उसको परेसरहद की सुरक्षा का शैख़ साहिब छोड़ घर बाहर चले हम जहाँ में आये थे तन्हा वलेसाथ अपने अब फ़र्ज़ तुम्हारा उसे लेकर चले जूँ शरर ऐ हस्ती-ए-बेबूद याँबारे हम भी अपनी बारी भर चले साक़िया याँ लग रहा है चल-चलाव,जब तलक बस चल सके साग़र चले 'दर्द'कुछ मालूम है ये लोग सबकिस तरफ से आये थे कीधर चले</pre>
<!----BOX CONTENT ENDS------>
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