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06:44, 21 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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<poem>
बहुत परीशान हो गया था
मैं नेक इंसान हो गया था
अगर मैं हैवान हो गया था
तो किसका नुक्सान हो गया था
वतन फरोशी था जिसका पेशा
वही निगहबान हो गया था
पलट के घर लौट आए तुम क्यों
सफ़र तो आसान हो गया था
हवाएं क्या कह गई थी कल शब्
दरख़्त तूफ़ान हो गया था
जो सर उठाने की बात आई
ये शहर सूनसान हो गया था
बता कि दौलत के बल पे सर्वत
तू कितना बलवान हो गया था</poem>