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12:27, 22 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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<poem>
बात बड़ी है लगती छोटी
ईमां ईमां , रोटी रोटी
जीवन का ये अर्थ नहीं है
पेट में चारा तन पे लंगोटी
शायद सूरज उग आएगा
सुर्ख हुई है पेड़ की चोटी
उसको देखो तब समझोगे
क्यों होती है नीयत खोटी
आँखों पे पट्टी चढ़ती है
अक्ल कहाँ होती है मोटी
अब वो भी ताने देते हैं
जिनको दे दी बोटी बोटी
जीवन की शतरंज पे सर्वत
तूं क्या, सब के सब हैं गोटी</poem>