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कांच के ख्वाब / गुलज़ार

24 bytes added, 13:51, 23 सितम्बर 2010
|रचनाकार=गुलज़ार
|संग्रह = पुखराज / गुलज़ार
}}{{KKCatNazm}}
<poem>
देखो आहिस्ता चलो,और भी आहिस्ता ज़रा
देखना,सोच-समझकर ज़रा पावँ पाँव रखना
जोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं
कांच के ख्वाब ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में ख्वाब ख़्वाब टूटे न कोई,जाग न जायें देखो
जाग जायेगा कोई ख्वाब ख़्वाब तो मर जायेगा
</poem>