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09:48, 25 सितम्बर 2010 {{KKRachna
|रचनाकार=गुलज़ार
|संग्रह = पुखराज / गुलज़ार
}}
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<poem>
ठंडी साँसे ना पालो सीने में
लम्बी सांसों में सांप रहते हैं
ऐसे ही एक सांस ने इक बार
डस लिया था हसी क्लियोपेत्रा को
मेरे होटों पे अपने लब रखकर
फूँक दो सारी साँसों को 'बीबा'
मुझको आदत है ज़हर पीने की
</poem>