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सड़क-तीन / ओम पुरोहित ‘कागद’

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<Poem>
रेत नहीं चाहती
पगडंडियों को खोना
बिफर जाती है
गांव की ओर बढ़ती
सड़क पर
और
हांय-हांय करती
बिछ जाती है
उलट कर
सड़क पर
क्योंकि, वह जानती है
सड़क ले जाएगी
ढो कर गांव से
अथाह मुहब्बत
और
कर देगी कत्ल
किसी शहरी चौराहे पर।
</poem>
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