|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}<poem>क्या कहिये किस तरह से जवानी गुज़र गयीगईबदनाम करने आई थी बदनाम कर गयी।गई ।
क्या क्या रही सहर को शब-ए-वस्ल की तलाश
कहता रहा अभी तो यहीं थी किधर गयी।गई ।
रहती है कब बहार-ए-जवानी तमाम उम्र
मानिन्दे-बू-ए-गुल इधर आयी उधर गयी।गई ।
नैरंग-ए-रोज़गार से बदला न रंग-ए-इश्क़
अपनी हमेशा एक तरह पर गुज़र गयी।गई ।</poem>