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अभी जो कोंपलें फूटी हैं छोटे-छोटे बीजों पर / गौतम राजरिशी
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06:46, 28 सितम्बर 2010
भला है ज़ोर कितना, देख, इन पतले-से धागों में
टिकी है मेरी दुनिया माँ की सब बाँधी तबीज़ों पर
''{त्रैमासिक नयी ग़ज़ल, जुलाई-सितम्बर 2009}''
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Gautam rajrishi
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