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आईनों पे जमीं है काई लिख / गौतम राजरिशी
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06:48, 28 सितम्बर 2010
साहिल के रेतों पर या फिर लहरों पर
इत-उत जो भी लिखती है पुरवाई, लिख
रात ने जाते-जाते क्या कह डाला था
बूढ़े बह्र पे ग़ज़लों में तरुणाई लिख
''
(
{मासिक
हंस, सितम्बर 2010
)
}
''
</poem>
Gautam rajrishi
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