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एक मुद्दत से हुए हैं वो हमारे यूँ तो / गौतम राजरिशी
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07:06, 28 सितम्बर 2010
साथ लहरों के गया छोड़ के तू साहिल को
अब भी जपते हैं तेरा नाम किनारे यूँ तो
''{त्रैमासिक सरस्वती-सुमन, जनवरी-मार्च2010}''
</poem>
Gautam rajrishi
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