धुआंधार घात-प्रतिघात से
कर दिया था बेदम-बेज़ार,
नीचे धुल धूल चाटने लगे थे
चौखटों से टूटे दरवाज़े-पल्ले
और रोशनदानों के चूर हुए शीशे
घुसपैठ करने से पहले
लापलापाते लपलपाते हाथों से उसने
ताबड़तोड़ थप्पड़-झापड़ रसीद कर
उसकी खरगोशी आँखों में
विषबुझी रेतें उड़ेलकर
उसे लुंज-पुंजबुट पुंज बुत बना दिया था
उफ्फ़! वह उफ्फ़ तक न कर पाई थीखुद को सुरक्षित अपने-आप में सुरक्षित समेट भी न पाई थी
अपने किसी कृष्ण को रक्षार्थ बुला भी न पाई थी
और पलक झपकतें झपकते उसने उसकी देह दबोच
हर लिया था उसका चीर
बिगाड़ दिया था उसका साज-सिंगार
वह निर्वस्त्र-निष्पात कंपकपाती टहनी
जाती तो किन झुरमुटों की साया में
सिवाय रसोई के कोने से
जिसकी वेबस बेबस खिड़कियों से
अपना खौफ़नाक सिर डालकर
वह उसे बदतमीजी से घूर रहा था
बिचारी निर्जीव,नि:शब्द, नि:शक्त
सहती रही ज्यादतियाँ
जो वह करता रहा निर्विघ्न बेरोकटोक
जी-भर मनमाना करने