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09:51, 29 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=लिखे में दुक्ख / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
सच अप्रिय होता है
यह कोई नहीं जान पाएगा कि
मैं मरूंगा इसी के साथ
दोस्त नहीं समझ पायेंगे
कि मैं उनके हिस्से की लड़ाई
इसी हथियार से लड़ रहा हूं
जब मैं लड़ाई के मैदान में हूं
वे सच की झूठी लड़ाइयों में मुब्तला हैं