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10:06, 29 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=लिखे में दुक्ख / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
सब कुछ के बावजूद
भूलता जाता हूं
इधर के स्वाद सुख
ढाबे से फेंकी गई
जली रोटियों की सुगन्ध
और कठिन दिनों में
उनका दिव्य स्वाद
इतना अधिक जीवित
जैसे अनश्वर