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09:22, 10 अक्टूबर 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू
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<poem>
आज फिर चाहता रहा कि तुम होती यहाँ
चाहना तुम्हें दारू की वजह थी
दिमाग में वह औरत भी थी
जिसे देख कर हम दोनों ने भौंहें सिकोड़ी थी
मैंने तुमसे छिपाकर सोचा उसका बदन
उसके होंठों के पास जाकर
लौट आया मेरा सपना
आज़ादी की उसकी सभी घोषणाएँ
मेरी गुलामी चाहती थीं और
मुझे बचाने आसमान से कृष्ण रथ चलाते आ गए
पिछली रात ही तुमने मुझे
पुकारा था अर्जुन कहकर
अब तुम कह रही देखो अर्जुन का रथ
सोचा नशे में बतलाऊँ
गुलाम लोगों के इस देश में हताश
हवा में उड़ते बादलों पर हम कैसे सवार
मैंने यह सब सोचा
हो सकता है कोई ऐसा ही सोचकर
दो क्षण हँसे या अपने दोस्त को चूमे
बहरहाल जिनको बुरा लगा उनसे कुट्टी.