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09:37, 10 अक्टूबर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू
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<poem>
खिलने को जन्मा
दिन
मुर्झाता मैंने देखा
उसे देखा
दिन
खिलने को जन्मा
दिन जन्मा
एक बार फिर मैं जन्मा
उसे देखा
देखा चराचर
खिल रहे
अपने-अपने दुखों में बराबर
दिन खिलता
रोता मैंने देखा
दिन
खिलने को जन्मा.