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05:56, 11 अक्टूबर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू
}}
<poem>
जब लेन्स सचमुच ढँका जाता है
खत्म हो जाती है एक दुनिया
अचानक आ गिरता है अन्धकार
अब तक रौशन समाँ में
उतारती है चमकीले कपड़े -
उसके एकमात्र करीबी दोस्त
सँभाल कर रखती है इन दोस्तों को
कि अगली किसी रौशन महफिल में
फिर हाजिर हो सके वह
इधर से उधर जाती और वापस आती
ब्रह्माण्ड की नज़रें साथ उसके घूमतीं
ऐसे मौकों पर वह वह नहीं
एक समूची दुनिया होती है
तमाम अँधेरे
सीने में समेटे होती है
सावधान कदमों से सँभाले हुए भार
नियत समय में पार करती
रोशनी से भरा अन्धकार.