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17:45, 12 अक्टूबर 2010
== बेवकूफी के शगल
<poem>रसिक हैं वे
याद हैं
मोहम्मद रफी के गाने
गुनगुनाते गाहे बगाहे
स्त्री स्टेनो में उनकी रुची
चर्चा का बिषय
नृत्य से प्रेम उन्हें
देखते फिल्मों में
संगीत उनकी दीवानगी
सुनते कर में ऍफ़ ऍम
शास्त्रीय टूं टा से परहेज
बतातें
उनका शगल
जिनके टाइम की नही कीमत
अच्छा तो आप कवि हैं
कहना
मुस्कराना वयंग्य से
उनकी अदा
कवि गर जूनियर नौकरी में
कविराज की वक्रोक्ति
कविता की किताब से बचते
जैसे अश्लील किताब
उसे अकेले में पढ़ भी लें
कविता कभी नहीं
पार्टियों के लिए करते खर्च
फिल्मों के लिए भी
शराब पीते उम्दा
हर शौक लाजबाब
साहित्य नहीं खरीदते
हिन्दी नाटक नही देखते
कला प्रदर्शिनी नही
जाते नहीं भारत भवन
पूछा उनसे
बोले
अक्ल गयी नहीं
अभी घास चरने
बेवकूफी के शगल
करने लगें
</poem> ==