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धान जब भी फूटता है / बुद्धिनाथ मिश्र
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16:40, 17 अक्टूबर 2010
<Poem>
धान जब भी फूटता है गाँव में
एक बच्चा दुधमुँहा
:
किलकारियाँ भरता हुआ
आ लिपट जाता हमारे पाँव में।
फैल जाती है सिघाड़े की लतर-सी
पीर मन की
:
छेंकती है द्वारतोड़ते किस तरह
:
मौसम के थपेड़े
जानती कमला नदी की धार
अनिल जनविजय
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