|संग्रह=दुख जोड़ेंगे हमें / ब्रजमोहन
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क़दम मिलाओ, साथियो! चलेंगे साथ-साथ हम
एक साथ ही उठाएंगे करोड़ हाथ हम
गुज़र गए हज़ार साल, ज़िन्दगी गुलाम है
साँस-साँस पर अभी भी ज़ालिमों का नाम है
बढ़ गए ज़ुल्म के निशान और पीठ पर
वे ही दिन हैं वे ही रात और वे ही शाम हैं
बदलने आग में चले हैं धड़कनों की बात हम
क़दम-क़दम पर लाठियाँ, क़दम-क़दम पर गोलियाँ
जानवर ये खेलते रहे लहू की होलियाँ
आदमी की शक्ल में ये जानवर की हरकतें
जानवर ने सीख ली हैं आदमी की बोलियाँ
सरफ़रोशों की ही हैं सरफिरी जमात हम
बूंदबूँद-बूंद बूँद मिल के समन्दर बनेंगे साथियो
राई-राई मिल पहाड़ से उठेंगे साथियो
अपने-अपने दिल की आग को मिला के एक साथ
हम सुबह के सूर्य की तरह उगेंगे साथियो
स्याह रात को हैं आफ़ताब की बरात हम
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