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{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज भावुक
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>

मुहब्बत खेल हऽ अइसन कि हारो जीत लागेला
भुला जाला सभे कुछ आदमी, जब प्रीत लागेला

अगर जो प्यार से मिल जा त माँड़ो-भात खा लीले
मगर जो भाव ना होखे, मिठाई तींत लागेला

पड़े जब डाँट बाबू के, छिपीं माई का कोरा में
अजी, ई बात बचपन के मधुर संगीत लागेला

कबो केहू ना आपन हो सकल मतलब का दुनिया में
डुबावत नाव ऊहे बा, जे आपन हीत लागेला

कहानी के तरे पूरा करीं, रउवे बताईं ना
बनाईं के तरे हम छत ढहे जब भीत लागेला

दुखो में ढूँढ़ लऽ ना राह 'भावुक' सुख से जीये के
दरद जब राग बन जाला त जिनिगी गीत लागेला

<poem>