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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज भावुक }} [[Category:ग़ज़ल]] <poem> आखिर जुबां के बात कल…

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{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज भावुक
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
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आखिर जुबां के बात कलम में समा गइल
गजलो में हमरा जिन्दगी के रंग आ गइल

बरिसन से जे दबा के हिया में रहे रखल
अचके में आज बात ऊ कइसे कहा गइल

उनका से कवनो जान भा पहचान ना रहे
भइले मगर ऊ दूर त मन छटपटा गइल

एह जिन्दगी के राह के होई के हमसफर
सोचत में रात बात ई मन कसमसा गइल

अबले ना जिन्दगी से मुलाकात हो सकल
ऊ साथे-साथ जब कि बहुत दूर आ गइल

कइसे भुला सकी कबो ऊ मद भरल अदा
जवना निगाहे-नूर प 'भावुक' लुटा गइल

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